*|| जय श्रीराम ||*
*श्री हनुमान चालीसा महात्म्य*
===========================
श्री हनुमान चालीसा रोज भक्तीभावाने पठण केल्यास,
*मनुष्य कोणत्याही प्रकारचे संकट, आजार, कर्ज, कौटुंबिक कलह, तसेच इतर कोणत्याही प्रकारच्या समस्या यांतून खात्रीशीरपणे मुक्त होतो..*
*आणि त्याला व परिवाराला उत्तम आरोग्य, कौटुंबिक सौख्य, सुख, शांती, समृद्धी, ऐश्वर्य, किर्ती, आनंद, समाधान इत्यादी गोष्टी अगदी सहजपणे प्राप्त होतात व तो दिर्घायुषी होतो..*
*आणि त्याची उत्तमातल्या उत्तम भौतिक प्रगतीसोबतच, अनंत अशी आध्यात्मिक प्रगती होते...*
*॥ श्री हनुमान चालीसा ॥*
*॥ दोहा॥*
श्रीगुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके
सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं
हरहु कलेस बिकार ॥
*॥ चौपाई ॥*
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥२
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥३
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५
शंकर सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥६
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥७
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥९
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०
लाय सजीवन लखन जियाए ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥११
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥१७
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥२२
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥२३
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महावीर जब नाम सुनावै ॥२४
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥२५
संकट तै हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥२७
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८
चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥३०
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥३१
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२
तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३
अंतकाल रघुवरपुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४
और देवता चित्त ना धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६
जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥३८
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०
*॥ दोहा ॥*
पवन तनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप ॥
*|| जय बजरंग बली | जय हनुमान ||*
*|| श्रीराम जयराम जय जय राम ||*
No comments:
Post a Comment