Saturday, 24 September 2022

जय हनुमान

 *|| जय श्रीराम ||*

*श्री हनुमान चालीसा महात्म्य*

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श्री हनुमान चालीसा रोज भक्तीभावाने पठण केल्यास,

*मनुष्य कोणत्याही प्रकारचे संकट, आजार, कर्ज, कौटुंबिक कलह, तसेच इतर कोणत्याही प्रकारच्या समस्या यांतून खात्रीशीरपणे मुक्त होतो..*

*आणि त्याला व परिवाराला उत्तम आरोग्य, कौटुंबिक सौख्य, सुख, शांती, समृद्धी, ऐश्वर्य, किर्ती, आनंद, समाधान इत्यादी गोष्टी अगदी सहजपणे प्राप्त होतात व तो दिर्घायुषी होतो..*

*आणि त्याची उत्तमातल्या उत्तम भौतिक प्रगतीसोबतच, अनंत अशी आध्यात्मिक प्रगती होते...*



*॥ श्री हनुमान चालीसा ॥*


*॥ दोहा॥*

श्रीगुरु चरन सरोज रज

निज मनु मुकुरु सुधारि ।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु

जो दायकु फल चारि ॥


बुद्धिहीन तनु जानिके

सुमिरौं पवन-कुमार ।

बल बुधि बिद्या देहु मोहिं

हरहु कलेस बिकार ॥


*॥ चौपाई ॥*

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१


राम दूत अतुलित बल धामा ।

अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥२


महाबीर बिक्रम बजरंगी ।

कुमति निवार सुमति के संगी ॥३


कंचन बरन बिराज सुबेसा ।

कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४


हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।

काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५


शंकर सुवन केसरी नंदन ।

तेज प्रताप महा जगवंदन ॥६


बिद्यावान गुनी अति चातुर ।

राम काज करिबे को आतुर ॥७


प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।

राम लखन सीता मन बसिया ॥८


सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।

बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥९


भीम रूप धरि असुर सँहारे ।

रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०


लाय सजीवन लखन जियाए ।

श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥११


रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२


सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।

अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३


सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।

नारद सारद सहित अहीसा ॥१४


जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।

कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५


तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।

राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६


तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना ।

लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥१७


जुग सहस्त्र जोजन पर भानु ।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८


प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।

जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९


दुर्गम काज जगत के जेते ।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०


राम दुआरे तुम रखवारे ।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१


सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।

तुम रक्षक काहू को डरना ॥२२


आपन तेज सम्हारो आपै ।

तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥२३


भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।

महावीर जब नाम सुनावै ॥२४


नासै रोग हरै सब पीरा ।

जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥२५


संकट तै हनुमान छुडावै ।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६


सब पर राम तपस्वी राजा ।

तिनके काज सकल तुम साजा ॥२७


और मनोरथ जो कोई लावै ।

सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८


चारों जुग परताप तुम्हारा ।

है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९


साधु सन्त के तुम रखवारे ।

असुर निकंदन राम दुलारे ॥३०


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।

अस बर दीन जानकी माता ॥३१


राम रसायन तुम्हरे पासा ।

सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२


तुम्हरे भजन राम को पावै ।

जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३


अंतकाल रघुवरपुर जाई ।

जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४


और देवता चित्त ना धरई ।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५


संकट कटै मिटै सब पीरा ।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६


जै जै जै हनुमान गोसाईं ।

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७


जो सत बार पाठ कर कोई ।

छूटहि बंदि महा सुख होई ॥३८


जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।

होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९


तुलसीदास सदा हरि चेरा ।

कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०


*॥ दोहा ॥*

पवन तनय संकट हरन,

मंगल मूरति रूप ।

राम लखन सीता सहित,

हृदय बसहु सुर भूप ॥


*|| जय बजरंग बली | जय हनुमान ||*

*|| श्रीराम जयराम जय जय राम ||*


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