Tuesday, 8 July 2025

बरखा राणी

 *कल हम भी*

*बारिश में छपाके*

*लगाया करते थे...*

*आज इसी बारिश में*

*कीटाणु देखना सीख गये!!*


*कल बेफिक्र थे कि*

*माँ क्या कहेगी*

*आज बारिश से*

*मोबाइल बचाना सीख गये!!*


*कल दुआ करते थे कि*

*बरसे बेहिसाब*

*तो छुट्टी हो जाए...*

*अब डरते हैं कि रुके ये बारिश*

*कहीं दफ़्तर ना छूट जाये!!*


*किसने कहा कि*

*नहीं आती वो*

*बचपन वाली बारिश...*

*हम ख़ुद अब काग़ज़ की*

*नाव बनाना भूल गए!!*


*बारिश तो अब भी बारिश ही है*

*बस हम अपना ज़माना भूल गये ......*

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