Tuesday, 22 October 2024

सनातन धर्म में अगरबत्ती को क्यों नहीं जलाया जाता है…?

 *सनातन धर्म में अगरबत्ती को क्यों नहीं जलाया जाता है…? अधिकांश लोगों को इस बारे में पता नहीं है और हम अपनी पूजा पद्धति में अगरबत्ती जलाना अनिवार्य समझते हैं।*


लोगों का भगवान की आराधना करने का अपना-अपना तरीका होता है। कुछ लोग घी तेल आदि का दीपक जलाते हैं तो वहीं कुछ लोग धूप दीप या अगरबत्ती जलाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि धर्म शास्त्रों में पूजा के दौरान 'अगरबत्ती' जलाना शुभ नहीं माना जाता। बांस को जलाने से भाग्य और वंश का नाश होता है। मान्यताओं में बांस को भाग्यवर्धक और वंश वृद्धि का प्रतीक माना जाता है। आइए इसके पीछे मौजूद धार्मिक और वैज्ञानिक कारण जानते हैं।


हम अक्सर शुभ (जैसे; हवन अथवा पूजन) और अशुभ (दाह संस्कार) कामों के लिए विभिन्न प्रकार के लकड़ियों को जलाने में प्रयोग करते है लेकिन क्या आप ने कभी किसी काम के दौरान बांस की लकड़ी को जलता हुआ देखा है। नहीं ना…?


भारतीय संस्कृति, परंपरा और धार्मिक महत्व के अनुसार, 'हमारे शास्त्रों में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित माना गया है। यहाँ तक की हम अर्थी के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग तो करते है लेकिन उसे चिता में जलाते नहीं।' हिन्दू धर्म के अनुसार बांस जलाने से पितृ दोष लगता है, वहीं जन्म के समय जो नाल 'माता और शिशु' को जोड़ के रखती है, उसे भी बांस के वृक्षों के बीच में गाड़ते हैं ताकि वंश सदैव बढ़ता रहे।


*क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है…?*


बांस में लेड व हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। लेड जलने पर लेड ऑक्साइड बनाता है जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते हैं। लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है यहां तक कि चिता में भी नहीं जला सकते, उस बांस की लकड़ी को हम लोग रोज अगरबत्ती में जलाते हैं। अगरबत्ती के जलने से उत्पन्न हुई सुगन्ध के प्रसार के लिए फेथलेट नाम के विशिष्ट केमिकल का प्रयोग किया जाता है। यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है जो कि श्वांस के साथ शरीर में प्रवेश करता है। इस प्रकार अगरबत्ती की तथाकथित सुगन्ध न्यूरोटॉक्सिक एवं हेप्टोटोक्सिक को भी श्वांस के साथ शरीर में पहुंचाती है। इसकी लेश मात्र उपस्थिति कैंसर अथवा मष्तिष्क आघात का कारण बन सकती है। हेप्टो टॉक्सिक की थोड़ी सी मात्रा लीवर को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है।


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शास्त्रों में पूजन विधान में कही पर भी 'अगरबत्ती' का उल्लेख नहीं मिलता सब जगह 'धूप' ही लिखा है, हर स्थान पर धूप, दीप, नैवेद्य का ही वर्णन है।


अगरबत्ती का प्रयोग भारतवर्ष में इस्लाम के आगमन के साथ ही शुरू हुआ है। मुस्लिम लोग अगरबत्ती मजारों में जलाते हैं, हम हमेशा अंधानुकरण ही करते हैं, जब कि हमारे धर्म की हर एक बातें वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार मानवमात्र के कल्याण के लिए ही बनी है।


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✍️ साभार


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