विचाराधीन बंदियों को न्याय दिलाने वाला विधि सहायता उपक्रम
• मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पहल पर शुरू हुआ उपक्रम
मुंबई, दिनांक 19 जून : मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पहल पर वर्ष 2018 में शुरू किए गए देश के पहले विधि सहायता उपक्रम का क्रियान्वयन राज्य में प्रभावी रूप से किया जा रहा है, जो कारागृहों में बंद विचाराधीन कैदियों के लिए न्याय का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। इस उपक्रम से अब तक लगभग 20,000 विचाराधीन बंदियों को लाभ हुआ है, जिनमें से लगभग 9,000 यानी 45 प्रतिशत बंदियों को विभिन्न कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से रिहा किया गया है।
इस उपक्रम की विशेष बात यह है कि केंद्र सरकार ने भी इसे राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया है और इसके क्रियान्वयन के लिए आर्थिक प्रावधान भी किया है।
प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत की जेलों में औसत कैदी दर 130% है, जिसमें लगभग 77% कैदी विचाराधीन (अंडर ट्रायल) होते हैं। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पहल कर उद्योगपति अज़ीम प्रेमजी से चर्चा की और उनके फाउंडेशन के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) कर देश का पहला विधिक सहायता उपक्रम शुरू किया।
कई बंदी आज भी केवल इस कारण से जेल में हैं क्योंकि उन्हें विधिक प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है या वे ज़मानत की राशि नहीं चुका सकते। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की दूरदृष्टि से आरंभ किए गए इस उपक्रम की मदद से विचाराधीन बंदी कानूनी प्रक्रिया का पालन कर न्याय प्राप्त कर रहे हैं।
राज्य सरकार ने अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन, कार्यान्वयन सहयोगी संस्था टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (TISS) तथा राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली के सहयोग से इस विधि सहायता उपक्रम को राज्यभर में शुरू किया है। यह उपक्रम महाराष्ट्र के आठ प्रमुख कारागृहों — आर्थर रोड, भायखळा, कल्याण, तळोजा, लातूर, ठाणे, पुणे और नागपूर — में प्रभावी रूप से क्रियान्वित किया जा रहा है।
इन कारागृहों में तथा जिला विधि सेवा प्राधिकरणों में सामाजिक कार्य तथा विधि क्षेत्र के फेलोज़ की नियुक्ति की गई है। ये विशेषज्ञ बंदियों को उनके मामलों की तैयारी, न्यायिक प्रक्रिया में मार्गदर्शन तथा प्रभावी विधिक प्रतिनिधित्व उपलब्ध कराने का कार्य करते हैं।
इस उपक्रम के चलते विधिक सहायता व्यवस्था में मूलभूत सुधार हुए हैं, सेवाओं में समन्वय बढ़ा है तथा दुर्बल व संवेदनशील बंदियों के लिए न्याय की उपलब्धता में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है। नीति स्तर पर भी इस पहल से सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं।
इस उपक्रम की सफलता को देखते हुए राज्य सरकार ने अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के साथ हुए समझौता ज्ञापन का नवीनीकरण किया है और इसे दीर्घकालीन स्वरूप में विस्तारित किया जा रहा है। वर्तमान में इस उपक्रम की प्रभावी रूप से क्रियान्वयन प्रक्रिया जारी है।
अगले चरण में सूचना प्रबंधन प्रणाली को सुदृढ़ करना, जेलों में संचालित विधिक ‘क्लिनिक’ की कार्यक्षमता बढ़ाना तथा संस्थागत क्षमता को विकसित करना मुख्य उद्देश्य रहेगा। महाराष्ट्र राज्य गृह विभाग की कारागृह सुधार शाखा ने इस पहल के माध्यम से विधिक सहायता और न्याय सुलभता के क्षेत्र में देश के लिए एक अनुकरणीय मॉडल प्रस्तुत किया है।
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