शास्त्रों में वृक्षारोपण की महत्ता
पद्म पुराण में पुलस्त्यजी भीष्मजी से कहते हैं कि "वृक्ष पुत्रहीन पुरुष को पुत्रवान होने का फल देते हैं । इतना ही नहीं, वे अधिदेवतारूप से तीर्थों में जाकर वृक्ष लगाने वालों को पिंड भी देते हैं ।
अतः भीष्म ! तुम यत्नपूर्वक पीपल के वृक्ष लगाओ । वह अकेला ही तुम्हें एक हजार पुत्रों का फल देगा।
पीपल का पेड़ लगाने से मनुष्य निरोग व धनी होता है।
पलाश से ब्रहातेज, खैर से आरोग्य व नीम से आयु की प्राप्ति होती है।
नीम लगाने वालों पर भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं।
चंदन और कटहल के वृक्ष क्रमशः पुण्य और लक्ष्मी देने वाले हैं।
चम्पा सौभाग्य-प्रदायक है । इसी प्रकार अन्यान्य वृक्ष भी यथायोग्य फल प्रदान करते हैं।
जो लोग वृक्ष लगाते हैं उन्हें (परलोक में) प्रतिष्ठा प्राप्त होती है और जो वृक्ष व गोचर भूमि का उच्छेद करते हैं उनकी 21 पीढ़ियाँ रौरव नर्क में पकायी जाती हैं।"
'भविष्य पुराण में आता है कि 'जो व्यक्ति छाया, फूल और फल देने वाले वृक्षों का रोपण करता है या मार्ग में तथा देवालय में वृक्षों को लगाता हैं वह अपने पितरों को बड़े-बड़े पापों से तारता है और रोपणकर्ता इस मनुष्यलोक में महती कीर्ति तथा शुभ परिणाम को प्राप्त करता है तथा पूर्वकालीन और भावी पितरों को स्वर्ग में जाकर भी तारता ही रहता है।
विधिपूर्वक वृक्षों का रोपण करने से स्वर्ग-सुख प्राप्त होता है और रोपणकर्ता के तीन जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
वृक्ष के आरोपण में वैशाख मास श्रेष्ठ एवं ज्येष्ठ अशुभ है। आषाढ, श्रावण तथा भाद्रपद ये भी श्रेष्ठ हैं।'
अग्नि पुराण में आता है कि 'दक्षिण में गूलर और पश्चिम में पीपल का वृक्ष उत्तम माना जाता है। लगाये हुए वृक्षों को ग्रीष्मकाल में प्रातः-सायं, शीत ऋतु में मध्याह्न के समय तथा वर्षाकाल में भूमि के सूख जाने पर सींचना चाहिए।
अतः ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या का हल करना हो, पर्यावरण की सुरक्षा करनी हो, अपना इहलोक व परलोक सँवारना हो, आर्थिक लाभ पाना हो... किसी भी दृष्टि से देखा जाय तो वृक्षों का रोपण, संरक्षण-संवर्धन जरूरी है और हर व्यक्ति का कर्तव्य है।
अपने जन्मदिवस या अन्य किसी शुभ अवसर पर कम-से-कम एक वृक्ष लगाने का अवश्य संकल्प करें और दूसरों को वृक्ष लगाने के लिए प्रेरित भी करें। घर मे किसी का जन्म दिवस हो तो उसके हाथ से वृक्षारोपण करायें। अपने पूर्वजों के नाम पर वृक्ष लगायेऺ। पौधों की सदैव रक्षा सुरक्षा करें। हरे भरे वृक्ष पर कभी भूल कर कुल्हाड़ी आरा न चलायें नही चलवायेऺ । एक वृक्ष दस पुत्र के बराबर ऐसी मान्यता हमारे शास्त्रों में है। वृक्ष ही हमारी हमारी धरती माता के श्रृंगार हैं। अपने माँ के श्रृंगार को उजाडे नहीं उसकी रक्षा करना हमारा धर्म है। हम सभी मिल कर यह सऺकल्प लेऺ कि हम कम से कम पाॅच वृक्ष लगा कर तैयार करेंगे। ऐसा करने से आप का जीवन सफल होगा। साथ ही आप के पूर्वज पितर प्रशन्न होगें आपके कुल की रक्षा होगी। वऺश वृद्धि होगी धन धान्य से सऺपन्न होगें ऐसा शास्त्रों का मत है।
ऊँ नमो नारायण जय श्री सीताराम
जय गऺगा मैया की जय गौ माता की
ब्राह्मण देवता की जय सऺत समाज की जय सनातन धर्म की जय तीर्थराज प्रयाग की जय
आपका अपना
वैदिक सत्य सनातन धर्म रक्षक
दासानुदास राकेश दास जी महाराज
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