Friday, 27 December 2024

*🍁 तुलसी मैया की महिमा 🍁मु

 *🍁 तुलसी मैया की महिमा 🍁*


     राजस्थान में जयपुर के पास एक कस्बा है– लदाणा। पहले वह एक छोटी सी रियासत थी। उसका राजा एक बार शाम के समय बैठा हुआ था। उसका एक सेवक किसी काम से वहाँ आया। राजा की दृष्टि अचानक उसके गले में पड़ी तुलसी की माला पर गयी।

 

      राजा ने चकित होकर पूछाः “क्या बात है, क्या तू भगत जी बन गया है ?”


    सेवक बोला- “नहीं, महाराज!! भगत नहीं बना हूँ।”


राजा ने पूछा- “तो ये तुलसी की माला क्यों गले में डाल ली है ?”


सेवक बोला- “राजासाहब ! 


*तुलसी की माला की बड़ी महिमा है।*


राजा ने पूछा- “क्या महिमा है?”

सेवक ने कहा- “राजासाहब! मैं आपको एक घटना सुनाता हूँ।


    कुछ दिन पूर्व मैं अपने ननिहाल जा रहा था। सूरज ढलने को था। इतने में मुझे दो छाया-पुरुष दिखाई दिये, जिनको साधु संत यमदूत बोलते हैं। उनकी डरावनी आकृति देखकर मैं घबरा गया। 


    तब उन्होंने कहा -आज  “तेरी मौत नहीं आयी है। अभी यंहा एक युवक किसान बैलगाड़ी भगाता-भगाता आयेगा। 


          यह जो गड्ढा है उसमें उसकी बैलगाड़ी का पहिया फँसेगा और बैलों के कंधे पर रखा जुआ टूट जायेगा। 

बैलों को प्रेरित करके हम उद्दण्ड बनायेंगे, तब उनमें से जो दायीं ओर का बैल होगा, वह विशेष उद्दण्ड होकर युवक किसान के पेट में अपना सींग घुसा देगा और इसी निमित्त से उसकी मृत्यु हो जायेगी। हम उसी की जीवात्मा को लेने आये हैं।


    राजासाहब !  मैंने उन यमदूतों से हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि ‘यह घटना देखने की मुझे अनुमति मिल जाय।’ उन्होंने अनुमति दे दी और मैं दूर एक पेड़ के पीछे खड़ा हो गया। थोड़ी ही देर में उस कच्चे रास्ते से बैलगाड़ी दौड़ती हुई आयी और जैसा उन्होंने कहा था ठीक वैसे ही बैलगाड़ी को झटका लगा, बैल उत्तेजित हुए, युवक किसान उन पर नियंत्रण पाने में असफल रहा। बैल धक्का मारते-मारते उसे दूर ले गये और बुरी तरह से उसके पेट में सींग घुसेड दिया और वह मर गया।


 राजा ने उत्सुकता से पूछा- “फिर क्या हुआ ?”


सेवक - “महाराज ! युवक किसान की मौत के बाद मैं पेड़ की ओट से बाहर आया और दूतों से पूछा - "इसकी (जीवात्मा) कहाँ है, कैसी है ?”


        वे बोले - "वह जीव हमारे हाथ नहीं आया। मृत्यु तो हमारे निमित्त से हुई थी, किंतु जहाँ उसने प्राण त्यागे वहाँ तुलसी का पौधा था। और जहाँ तुलसी होती है वहाँ मृत्यु होने पर जीव भगवान श्रीहरि के धाम में जाता है। पार्षद आकर उसे ले जाते हैं।"


सेवक ! महाराज तबसे मुझे ऐसा ज्ञान हुआ कि मृत्यु के बाद मैं स्वर्ग जाऊंगा या नर्क यह तो मुझे पता नहीं, किन्तु तुलसी की माला तो पहन लूँ ताकि कम से कम भगवान नारायण के धाम में जाने का तो अवसर मिल ही जायेगा और तभी से मैं तुलसी की माला पहनने लगा।"


कैसी दिव्य महिमा है तुलसी-माला धारण करने की ! इसीलिए हिन्दू धर्म में किसी का अंत समय उपस्थित होने पर उसके मुख में तुलसी का पत्ता और गंगाजल डाला जाता है, ताकि जीव की सदगति प्रप्त हो जाय।

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