Friday, 26 April 2019

अवयव दान महादान



अवयव दान महादान
                          झोनल ट्रान्सप्लांट को - ऑर्डिनेशन सेंटर (मुंबई)


प्र.   अंगदान क्या है?
उ.   अंगदान ऐसा पवित्र दान है जिसमे हम मृत्यु के बाद कई लोगों की जिंदगी बचाकर पुण्य कमा सकते है। अंग प्रत्यारोपण उस मरीजों के लिये अंतिम उम्मीद की किरन है जिनके अंग बेकार हो जाने के कारण वे जीने की उम्मीद भी खो चुके है।

प्र.   अंग प्रत्यारोपण क्या है?
उ.   इंसान का अंग प्रत्यारोपण करना आधुनिक विज्ञान की ऐसी महान उपलब्धि है की जिसमे जीवित या मृत व्यक्ति का स्वस्थ अंग मरीज में ऑपरेशन द्वारा बिठाया जाता है। प्रत्यारोपण शस्त्रक्रिया उन मरीजों के लिए जीवनदान है जिका कइ अंग पूरी तरह से निष्क्रिय या नाकाम हो चुका है। यह जरूरतमंद मरीजों के लिये प्रमाणित और उपलब्ध शल्यक सर्जिकल उपचार है

प्र.   किन अंगों का दान किया जा सकता है
उ.   अगर दिमागी चोट के कारण मस्तिष्क स्तंभ मौत हो जाये तो महत्वपूर्ण अंग जैसे हृदय, यकृत, दो किडनी, पॉक्रिंयास अंतडिया, फेफडे आदि का दान किया जा सकता है। हृदय बंद होने के पश्चात प्रमुख अंगो का दान नही हो सकता क्योंकी खून न मिलने वह प्रत्यारोपण के लिय योग्य नही रहते है। लेकिन इस स्थिती में त्वचा, आँखे, कॉर्निंया तथा अन्य उतक टिश्यू आदि का दान हो सकता है। जीवीत व्यक्ति भी कुछ अंगो का दान अपने निकट सम्बन्धी को कर सकते है। जैसे किडनी कलेजा लिवर आदि। अन्य अंगो का दान केवल मस्तिष्क स्तंभ या ब्रनडेड ही कर सकते हैं।

प्र.   दिमागी मौत क्या है ब्रेनडेड या मस्तिष्क स्तंभ मृत्यू क्या है।
उ.   हमारे दिमाग का महत्वपूर्ण भाग मस्तिष्क स्तंभ जो कि सांस चेतना आदि महत्त्वपूर्ण कार्य से जुडा है यह अगर पूरी तरह निष्क्रिय हो जाये यानि दिमाग का वह भाग लाइलाज हो जाये तो उसे दिमागी मौत ब्रेनडेड कहते है। दिमाग हमारे सम्पूर्ण शरीर के स्नायुतंत्र का केंद्र है।
दिमागी तौरपर मरे हुए इंसान को वापस न तो काभी होश आता है नर ही उसकी सांस फिर चलती है। केवल हृदय व अन्य अंग ही ३६ से ७२ घंटे तक ही अन्य किसी कृत्रिम आधार के द्वारा या वायूसंचार वेंटिलेटर द्वारा काम कर सकता है। ३६ से ७२ घंटो के दौरान जब तक रक्तसंचार, अंगों में जारी है इसी बीच मरीज के निकट सम्बंधी की सहमती से अंग का दान किया जा सकता है। दिमागी मौत केवल अतिदक्षता विभाग I.C.U  में ही हो सकता है।
   
प्र.   दिमागी मौत की घोषणा कब कर सकते है?
उ.   दिमागी मौत सम्बन्धी कमेटी ब्रेन डेड कमेटी जिसमें सरकारी मान्यताप्राप्त चार डॉक्टर सदस्य होते है। यह डॉक्टर प्रतिरोपण चिकित्सा से किसी तरह भी जुड़े हुए नहीं होते है। इन चार डॉक्टरों की टीम ६ घंटे के अंतर पर दो बार दिमागी मौत के मरीज़ की जांच करती है और तब मौत की घोषणा करती है। यह घोषणा प्रत्यारोपण के लिए मान्यताप्राप्त अस्पताल में ही की जाती है। दिमागी मौत विश्व स्तर पर स्वीकारी जाती है और उसका प्रमाण पत्र उसके निकट सम्बन्धी को दिया जाता है।

प्र.   क्या दिमागी मौत के व्यक्ति के बचने की उम्मीद हो सकती है?
उ.   नहीं। दिमागी मौत का घोषित मरीज दोबारा जीवित नही हो सकता है। मान्यताप्राप्त डॉक्टरी टीम द्वारा दो बार की गई जांच के बाद ही दिमागी मौत घोषित की जाती है। उसके बचने की कोई संभावना नही रहती।
दिमागी मौत का इच्छा मृत्यु या कोमा से कोई सम्बन्ध नहीं है, उसके अंग दिमागी मौत के बाद ही प्रत्यारोपण के लिये निकालते है। कोमा में गया हुआ मरीज जिंदा होता है जबकी दिमागी मौत हुई है ऐसा इंसान मृत होता है। कोमा मे गए जीवित इंसान के अंग प्रत्यारोपण के लिय नहीं निकाले जाते।

प्र.   क्या अंगदाता की मौत अस्पताल में ही होनी चाहिए?
उ.   हाँ। दिमागी मौत केवल I.C.U  में ही हो सकती है। इसलिए प्रमुख अंगो का दान करने के लिए मृत्यु I.C.U में ही होना जरूरी है। अगर अंगदाता की मौत घर पर हुई है तो उसके प्रमुख अंग नहीं निकाले जा सकते केवल आँखे और त्वचा ही धडकन बंद होने के ६ घंटे के अंदर प्रत्यारोपण के लिए निकाली जा सकती है।

प्र.   क्या यह कानूनी है?
उ.   हों। भारत में १९९४ में अंगदान प्रत्यारोपण अॅक्ट कानूनी तौर पर मान्यता पा चुका है। जो कि मुख्य रुप से तीन क्षेत्रों पर लागू होता है।
    १. यह मस्तिष्क स्तंभ मृत्यू को मान्यता देता है।
    २. चिकित्सकीय उद्देश्य को ध्यान में रखकर यह अॅक्ट अंग निकालना सुरक्षित रखना प्रत्यारोपण करना आदि को नियंत्रित करता है।
    ३. यह अंगों के व्यवसायीकरण को रोकता है। यह अॅक्ट इंसानी अंगों को खरेदीने बेचने से रोकता है।

प्र.   क्या अंगदाता का शरीर उसके निकट सम्बन्धी को दिया जाता है?
उ.   हाँ। अंगदाता का शरीर प्रत्यारोपण के लिये अंग निकालने के बाद निकट सम्बन्धी को क्रियाकर्म करने के लिये दे दिया जाता है। अंग का उपयोग मात्र चिकित्सीय उद्देश के लिए ही किया जाता है। अंगदान शरीरदान से भिन्न प्रक्रिया है। शरीरदान में मृत व्यक्ति का पूर्णं शरीर मेडिकल कॉलेज में अनुसंधान विभाग में वैद्यकीय प्रशिक्षण या संशोधन के लिए किया जाता है।

प्र.   क्या यह अंगदान धनवानों को ही दिये जाते है, दान किये गए अंगो का वितरण कैसे होता है?
उ.   नहीं। यह अंगदान प्राथमिकता के आधार पर उम्र रक्त गट प्रतीक्षा अवधी अंगप्राप्त करनेवाले की शारीरीक स्थिती को ध्यान में रखते हुए जरूरतमंद और योग्य मरीज को ही दिया जाता है। जरूरत मंद मरीजों की अंग और रक्त गट नुसार सामाईक यादि बनाई जाती है। महाराष्ट्र सरकारने बनाई हुइ मार्गदर्शिका नुसार ही उपलब्ध अंग का वितरण होता है। मरीज की आर्थिकता धर्म जात आदि का अंगदान के वितरण से कोई सम्बन्ध नही हैं।
        
प्र.   क्या अंगदाता का परिवार अंग प्रत्यारोपित व्यक्ति की जानकारी प्राप्त कर सकता है?
उ.   नहीं। अंग प्रत्यारोपित व्यक्ति का नाम पता अंगदाता के परिवार को नहीं दिया जाता न ही अंगदाता का नाम पता अंग प्रत्यारोपित व्यक्ति या उसके परिवार को दिया जाता है।

प्र.   क्या अंगदान के बाद अंगदाता का शरीर विरुपित हो जाता है?
उ.   नहीं। अंगदाता का अंग केवल ऑपरेशन थिएटर में ही कुशल शल्य चिकित्सक द्वारा कुशलता से निकाला जाता है। इसलिये उसके शरीर पर अन्य शल्य क्रिया जैसा ही निशान होता है। उसका शरीर विरूपित नही होता।

प्र.   क्या हमारा धर्म अंगदान की सहमति देता है?
उ.   हाँ। भारत में सभी धर्म अंगदान को श्रेष्ठ मानते है।

प्र.   क्या अंगदाता के परिवार को कोई मुआवजा या भुगतान दिया जाता है?
उ.   नहीं। यह शुध्द रुप से केवल दान है और पुण्य कर्म है। इसलिए कोई मुआवजा नही दिया जाता परंतु अंगदाता के परिवार की सहमती के बाद उनसे चिकित्सक जांच के लिये कुछ भी खर्च नही लिया जाता है।

प्र.   अंगदान कैसे किया जाता है?
उ.   डोनर कार्डपर स्वहस्ताक्षर करके हम अंगदान कर सकते है। इस कार्डपर निकट संम्बन्धी का हस्ताक्षर होना भी जरूरी है।


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