किरण मजूमदार शॉ ने वेव्स 2025 में भारत के
सृजनशील भविष्य की रूपरेखा प्रस्तुत की
स्टार्टअप्स से फिल्मों के परे सोचने और वैश्विक ब्रांड, परिसंस्थाएँ व बौद्धिक संपदा निर्माण करने का आह्वान
"परंपरा और तकनीक के संगम से नई कहानियाँ रचने का यही समय है" – शॉ
मुंबई, 3 मई – भारत में रचनात्मक कंटेंट निर्माण के क्षेत्र में कार्यरत स्टार्टअप्स को केवल फिल्मों तक सीमित न रहते हुए वैश्विक प्रभाव उत्पन्न करने वाले ब्रांड्स, परिसंस्थाएँ और बौद्धिक संपदा तैयार करनी चाहिए, ऐसा आवाहन बायोकॉन की संस्थापक और वैश्विक व्यवसाय की अग्रणी किरण मजूमदार शॉ ने किया। वे मुंबई के जिओ वर्ल्ड सेंटर में आयोजित पहले वैश्विक दृश्य-श्रव्य मनोरंजन शिखर सम्मेलन वेव्स 2025 के दूसरे दिन के संवाद सत्र में बोल रही थीं।
“भारत का नवाचार पुनर्जागरण: वैश्विक स्टार्टअप्स का अगला दशक” विषय पर फोर्ब्स एडिटर-एट-लार्ज मनीत आहुजा के साथ चर्चा की शुरुआत करते हुए शॉ ने भारतीय कहानियों की वैश्विक क्षमता पर प्रकाश डाला। उन्होंने रामायण का उदाहरण देते हुए कहा, “अब वह समय है जब हमें परंपरा और तकनीक के संगम से नई कहानियाँ रचनी चाहिए। जिस तरह जॉर्ज लुकास ने ‘स्टार वॉर्स’ के लिए भारतीय महाकाव्यों से प्रेरणा ली, उसी तरह हम भी अपनी सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक फ्रैंचाइज़ी में बदलने के लिए तकनीक का उपयोग कर सकते हैं।”
भारत की जनसंख्या संबंधी और डिजिटल क्षमता की बात करते हुए उन्होंने कहा, “अरबों स्मार्टफोन और तकनीक-प्रवीण जनरेशन Z के साथ भारत वैश्विक नवाचार के लिए तैयार है। लेकिन हर ब्लॉकबस्टर की शुरुआत एक छोटी सी कल्पना और निरंतर केंद्रित प्रयास से होती है।” उन्होंने बायोकॉन को गेराज से शुरू कर वैश्विक बायोटेक पॉवरहाउस बनाने के अपने सफर की तुलना भी की।
भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था पर फोकस
शॉ ने कहा कि रचनात्मक क्षेत्र से जुड़े लोगों को ऑरेंज इकॉनमी यानी सृजनशील अर्थव्यवस्था के विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिसमें अपार संभावनाएँ हैं। “वर्तमान में मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र भारत की जीडीपी में 20 अरब डॉलर का योगदान देता है। हमें 2047 तक इसे 100 अरब डॉलर और अंततः 1 ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखना चाहिए, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों के अनुरूप है,” उन्होंने कहा।
रचनात्मक निर्माताओं और स्टार्टअप्स का सशक्तिकरण
भारत की रचनात्मक क्षमता पर पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए शॉ ने कहा कि AR (ऑगमेंटेड रिएलिटी), VR (वर्चुअल रिएलिटी) और इमर्सिव अनुभवों का समावेश एक प्रमुख क्षेत्र होगा। उन्होंने कहा, “आगामी यूनिकॉर्न केवल ऐप्स नहीं होंगे, बल्कि वे रचनात्मक निर्माता होंगे जो बौद्धिक संपदा, तकनीक और इमर्सिव स्टोरीटेलिंग को समझते हैं।”
उन्होंने फिल्म RRR के प्रसिद्ध गीत ‘नाटू नाटू’ का उदाहरण देते हुए कहा कि भारतीय सृजनशीलता को केवल समुदाय से भावनात्मक रूप से जुड़ने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उसे वैश्विक स्तर पर भी प्रासंगिक होना चाहिए। “हर महान विचार एक छोटे स्तर से शुरू होता है। आप उसे कितनी दूर तक ले जाते हैं, यही सबसे महत्वपूर्ण होता है।” उन्होंने यह भी कहा कि विफलता इस यात्रा का एक हिस्सा है।
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